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नाम बड़े और दर्शन खोटे : आख़िर मदनलाल बालड़ परिवार ने 63 मासूम लोगों से क्यों छीन लिया उनका आशियाना?

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 नाम बड़े और दर्शन खोटे : आख़िर मदनलाल बालड़ परिवार ने 63 मासूम लोगों से क्यों छीन लिया उनका आशियाना?

विवादाग्रस्त भूमि की खरीद में क्यों लिप्त हुए मदनलाल बालड़ के पुत्र मुकेश बालड़,सुशील बालड़ और पुत्रवधु दीपमाला?

मामला है करोड़ों-अरबों की ज़मीन का जो कि स्थित है जोधपुर में ग्राम कुड़ी भगतासनी के पाली हाइवे पर।
खसरा नंबर 310 की 18 बीघा 5 बिस्वा ज़मीन 63 आम परिवारों और पुष्पचन्द संचेती के मध्य विवादाग्रस्त ज़मीन है।

इसी ज़मीन से सटी हुई  मदनलाल बालड़ के पुत्रों की फैक्ट्री सनसिटी आर्ट एक्सपोर्टस कंपनी भी स्थित है। ऐसे में चींटी की जान में भी भगवान देखने वाले,मानवता का संदेश देने वाले धर्म से जुड़े  बालड़ परिवार ने क्यों खरीदा विवादास्पद ज़मीन को अपने धन,बल और रसूख से और छीना 63 मासूम लोगों का अधिकार?

इस खसरा नंबर 310 पर शुरू से ही 63 परिवारों के आशियाने के सपने जुड़े थे।

बालड़ परिवार स्वयं रहता है आलीशान घर में A-52 व A-63 शास्त्रीनगर में ऐसे में किसी का घर उजाड़ कर छीन कर किस तरह यह परिवार चैन की नींद सोता होगा?

शालिनी श्रीवास्तव/कुलदीप गुप्ता
जयपुर-जोधपुर हिलव्यू समाचार

अपने रसूख,धन और बल के बलबूते पर मदनलाल बालड़ जो कि जैन समाज में एक प्रतिष्ठा और स्थान रखते हैं उन्हीं के पुत्रों ने 63 लोगों के घर के सपने को चकनाचूर कर दिया और पुष्पचन्द संचेती से मिलकर जिला न्यायालय जोधपुर महानगर व राजस्थान उच्च न्यायालय जोधपुर को गुमराह कर 63 मासूम परिवारों के ख़िलाफ़ अपने पक्ष में फ़ैसला करवा लिया।
ये 63 परिवार जिनके पास आय के साधन कम और व्यय के रास्ते ज़्यादा थे उनमें से कई लोग इनके धन,बल और दबाव के आगे घुटने टेक गए लेकिन न्याय के लिए राजस्थान उच्च  न्यायालय जोधपुर की तरफ़ आज भी उनकी मासूम निग़ाहें उठती हैं।
63 परिवारों  में से 9 परिवारों  ने पुनः न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया लेकिन पुनः एक बार मदनलाल बालड़ के पुत्रों मुकेश बालड़,सुशील बालड़ पुत्रवधु दीपमाला ने इनके आगे संघर्ष के इतने काटें बो दिए कि ये मासूम 09 परिवार भी टूटने लगे।
ताक़तवर के आगे लाचार निरीह प्राणी की हिम्मत दम तोड़ ही देती है यही इन 63 में से शेष 9 परिवारों के साथ फिर हुआ लेकिन उसके बावजूद आशा की किरण के रूप में 02 परिवार आज भी इस विवाद में अपना दावा स्थिर और मज़बूत तरीक़े से लगातार न्यायालय में प्रस्तुत करते आ रहे हैं।
न्यायालय के चक्कर काटते-काटते एक परिवार घर के मकान से किराये के मकान में आ गया उसका व्यवसाय भी इसी संघर्ष की भेंट चढ़ गया। न्यायालय के कड़े और सकड़े रास्तों में उनकी हिम्मत टूट गयी और इसी बीच बुज़ुर्ग पिता इस सदमे से लकवाग्रस्त भी हो गए।
क्या यही है मदनलाल बालड़ के परिवार की मानवता?
आइए जानते हैं पूरा मामला क्या है?
खातेदार कालूराम उर्फ कालिया पुत्र छैलाराम ने 132 प्लॉट की स्कीम काटकर 29 जून 1992 को उसका बेचान 63 लोगों के पक्ष में किया और इस दौरान नियत भुगतान प्राप्त कर 07 अक्टूबर 1992 को सभी 63 क्रेताओं के नाम की रजिस्ट्री भी करवा दी। 24 फरवरी 1993 को  खरीददारों के पक्ष में नामान्तरण भी हो गया।
लेकिन कालूराम उर्फ़ कालिया का प्रथम ख़रीददार जो कि डिफाल्टर साबित हुआ था और उसके साथ कालूराम ने सौदा कैंसल कर दिया था। उसी डिफाल्टर पुष्पचन्द संचेती ने  कोर्ट में झूठा परिवाद दायर कर दिया और कई महत्वपूर्ण तथ्य छुपाते हुए कोर्ट को गुमराह करते हुए बालड़ परिवार को अपनी धोखाधड़ी और जालसाजी में शामिल करते हुए 63 मासूम लोगों के ख़िलाफ़ फ़ैसला करवा लिया।
मदनलाल बालड़ के पुत्रों सुशील बालड़,मुकेश बालड़ व पुत्रवधू दीपमाला बालड़ का इस जमीन से जुड़ा लालच यह था कि यह जमीन उनकी फैक्ट्री सनसिटी आर्ट एक्सपोर्टस कंपनी के पास स्थित है और भविष्य में वह अपनी फैक्ट्री सनसिटी आर्ट एक्सपोर्ट कंपनी को और ज्यादा विस्तार रूप दे सकते हैं और सबसे बड़ी बात ये कि जोधपुर पाली हाईवे पर स्थित यह ज़मीन आज के समय में अरबों रुपए की हो गई है।
2004 में  पूरी बादनियति,जालसाजी और धोखाधड़ी से पुष्पचन्द संचेती और बालड़ परिवार ने  न्यायालय को गुमराह करते हुए न्यायालय के माध्यम से ही यह ज़मीन अपने हक में करवा ली।
सुशील बालड़,मुकेश बालड़ और दीपमाला बालड़ जो कि मदनलाल बालड़ के पुत्र और पुत्रवधू हैं उनके नाम यह जमीन हो गई।
सबसे बड़ी बात यह है कि 63 लोग इस बात से अनभिज्ञ रहे। वे अपने हक़ के लिए लगातार कोर्ट में जाते रहे लेकिन कोर्ट के चक्कर लगाते-लगाते यह मासूम परिवार धराशाही हो गए और इसी का फायदा रसूखदार और पैसे के दम पर बालड़ परिवार ने उठाया और इनको एक एक कर तोड़ दिया।

आज भी यह खसरा नंबर 310 का विवाद 18 बीघा 5 बिस्वा न्यायालय में लंबित है लेकिन बालड़ परिवार को न्यायालय के गलियारों से कोई शिकायत नहीं क्योंकि धन,बल और समय भरपूर रूप से उनके पास में है बालड़ परिवार के सुपुत्र सुशील बालड़,मुकेश बालड़ कहते हैं जिंदगी भर लड़ लेंगे इस जमीन के लिए और इसी के साथ कहते हैं कि शासन,प्रशासन,कोर्ट,वकील, गुंडे मवाली सब हमारे हैं हम जैसा चाहे वैसा फैसला करवा ही लेंगे लेकिन 63 परिवारों के पास पैसा तो छोड़ समय भी नहीं बचा है अब न्यायालय के चक्कर लगाने का।
सच ही है तारीख़ पर तारीख़ ……कोई फिल्मी डायलॉग नहीं बल्कि सत्य बात है न्यायालय के सकड़े और जकड़े गलियारों के लिए।
कई पीड़ित शोषित प्रकरण न्यायालय के गलियारों में दम तोड़ते रोज़ देखे जा सकते हैं। न्यायालय की जटिलता और लंबी प्रक्रिया आम आदमी की हिम्मत तोड़ने के लिए काफ़ी है।  अपराधी,गुंडे,मवाली,रसूखदार,पैसे वाले और प्रभावशाली  दबदबा रखने वाले लोग इसी तरह आम ग़रीब आदमी को बिना हथियार और हमला किए मसल कर फैंक देते हैं।
कानून सबके लिए समान होता है यह वाक्य मात्र एक आदर्श वाक्य बनकर दीवारों पर लिखा हुआ अच्छा लगता है जबकि धरातल पर इस वाक्य की सत्यता लगभग ख़त्म सी हो गयी है।
आदिकाल से ज़र जोरु और ज़मीन की लड़ाई चलती आ रही है और समर्थ को दोष नहीं गुसाई रामचरित मानस की यह लाइन जोधपुर शहर के प्रतिष्ठित व्यक्ति मदनलाल बालड़ के पुत्र मुकेश बालड़, सुशील कुमार बालड़ और पुत्रवधु दीपमाला पर पूरी तरह से चरितार्थ होती नजर आ रही है। हालांकि आगामी अंकों में इनके कई प्रकरणों का और ख़ुलासा करेगा हिलव्यू समाचार। तब तक के लिए देखते रहिए।
आपके अधिकार की आवाज़ है हिलव्यू समाचार।
संपर्क कर सकते है:7976561127 पर




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