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ईश्वर का अवतार मानी जाने वाली महिला डॉक्टर भी सुरक्षित नहीं

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ईश्वर का अवतार मानी जाने वाली महिला डॉक्टर भी सुरक्षित नहीं

स्टूडेंट्स डॉक्टर्स की भी अब तो यही दरकार,ब्लात्कार पर सख़्त हो केंद्र सरकार

लेकिन राइट टू हेल्थ बिल के विरोध में गत वर्ष उतरे हज़ारों डॉक्टर लापता क्यों?

ब्लात्कार जैसे संगीन अपराध के ख़िलाफ़ कहाँ हैं डॉक्टर्स का वो हूजूम जो राइट टू हेल्थ के विरूद्ध सड़कों पर उतर आया था?

केवल दुर्घटना के दौरान “इमरजेंसी” को लेकर बवाल खड़ा कर दिया था इन डॉक्टर्स ने कि अगर इमरजेंसी के चलते किसी घायल का इलाज़ किया तो कौन भुगतेगा उसका ख़र्च?

क्या ये डॉक्टर्स की एसोसिएशन केवल पैसों के लिए सड़क पर उतरना जानती है अपने प्रोफेशन से जुड़े स्टूडेंट्स महिला डॉक्टर के लिए उनके पास कोई संवेदनशील दिल नहीं है?

स्टूडेंट्स डॉक्टर्स के साथ कोई सीनियर डॉक्टर सड़कों पर नहीं उतरे आख़िर क्यों?

बलात्कारी पर कोई रहम ना हो बलात्कार करने वाले को सीधे फाँसी की सज़ा हो !महिला डॉक्टर स्टूडेंट्स है कहना

शालिनी श्रीवास्तव
हिलव्यू समाचार, जयपुर। देश 15 अगस्त यानी आज़ादी का 78वां महोत्सव मनाने जा रहा है लेकिन देश की बेटियाँ आज भी असुरक्षित हैं। बाहर ही नहीं अपने घर,अपने कार्यस्थल,अपने जाने पहचाने क्षेत्र में बेटियाँ,माँ,बहनें सुरक्षित नहीं आख़िर भारत माता कैसे ख़ुद को आज़ाद महसूस करती होंगी। भारत माँ का सीना छलनी करने वाली वारदातें कब रुकेंगी यह पूछती हैं देश की माँ, बहन,बेटियाँ!
पश्चिमी बंगाल में रेजिडेंट डॉ के साथ हुए ब्लात्कार के विरोध में एसएमएस मेडिकल कॉलेज के स्टूडेंट्स ने 14 अगस्त की रात को त्रिमूर्ति पुलिस शहीद स्मारक पर जुलूस निकाला और बलात्कार पर सख़्त कदम उठाकर बलात्कारी को सीधे फाँसी की सज़ा देने की मांग की। जार्ड (जयपुर एसोशिएशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स) के सचिव ने बताया कि पश्चिमी बंगाल में फीमेल रेजिडेंट डॉक्टर के साथ हुए ब्लात्कार की घटना से सभी डॉक्टर्स बहुत हतप्रभ और दुखी है ।
केंद्र सरकार से मांग है कि बलात्कारी को कड़ी से कड़ी सज़ा दी जाए एक अन्य महिला डॉक्टर ने कहा कि अस्पताल डॉक्टर्स का दूसरा घर होता है जब डॉक्टर्स आपने घर में सुरक्षित नहीं है तो आज़ादी के क्या मायने? मेडिकल स्टूडेंट्स ने आम नागरिकों से भी विनती की है की ऐसी विभत्स घटना पर केंद्र सरकार में अपनी माँग रखें कि जल्दी से जल्दी कड़ा क़ानून लाया जाए और ऐसे अपराधियों को सीधे फाँसी की सज़ा मिले ताकि देश की बेटियाँ अपने ही देश में असुरक्षित महसूस न करें।
हालांकि इस वक़्त केवल 18 से 25 वर्ष के युवा स्टूडेंट्स ही इस दौरान सड़क पर आंदोलन करते नज़र आये। अनुभवी और उम्र से परिपक्व डॉक्टर्स के पास क्या इस जघन्य अपराध के लिए कोई विरोधात्मक स्वर नहीं है क्या यह केवल और केवल स्टूडेंट्स रेजिडेंट महिला डॉक्टर्स का ही मुद्दा है?
केंद्र सरकार को इस गम्भीर और कोड़नुमा बीमारी का ईलाज़ करना बेहद ज़रूरी है जो कोरोना से ज़्यादा ख़तरनाक रोग है। फाँसी इसका एकमात्र इलाज़ है कि ब्लात्कार का भाव लाने से पहले अपराधी काँप उठे।




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