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राजापार्क विनोद पारवानी बिल्डर खेल रहा मज़दूरों की जान से

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राजापार्क विनोद पारवानी बिल्डर खेल रहा मज़दूरों की जान से

बिना निगम स्वीकृति,ज़ीरो सेट बैक पर अवैध निर्माण कर राजस्व की चोरी करने के बाद मज़दूरों की ज़िंदगी से भी खिलवाड़ जारी राजापार्क पारवानी बिल्डर का

राम गली नम्बर 8 स्थित प्लॉट नम्बर 12 पर बनी अवैध बिल्डिंग पर काम कर रहे पेंटर, मज़दूर,कारीगर की ज़िंदगी ख़तरे में झूल रही है लेकिन पारवानी बिल्डर को नहीं है कोई सरोकार

शालिनी श्रीवास्तव
हिलव्यू समाचार, जयपुर।
रामगली नम्बर 8 स्थित प्लॉट नम्बर 12 राजापार्क पर बिल्डर विनोद पारवानी द्वारा बिना निगम स्वीकृति के ज़ीरोसेट बैक पर बनाई गई बिल्डिंग पर काम कर रहे पेंटर व मज़दूरों की ज़िन्दगी खतरे में झूल रही है ।
बिल्डिंग के सामने वाले हिस्से पर कलर करने वाले पेंटर मज़दूर बिना किसी सेफ्टी हेलमेट और जैकिट के काम कर रहे हैं।
18 मीटर से ऊँची इमारत की ऊँचाई पर काम करने वाले पेंटर मज़दूर हमेशा ख़तरे में झूलते हैं क्योंकि इतनी ऊँचाई पर उनके लिए किसी भी तरह की कोई सुरक्षा के इन्तज़ाम नहीं होते बिल्डर्स द्वारा और इस वजह से काम करने वाले मज़दूरों की ज़िन्दगी हमेशा ख़तरे के साये में रहती है ।
बिल्डर विनोद पारवानी सरकारी राजस्व और इनकमटैक्स की चोरी तो कर ही रहे हैं पर अब वो भी वार्ड 94 पार्षद घनश्यामदास चन्दलानी की तरह बिल्डर कम पार्षद की राह पर चल पड़े हैं।
इन लोगों को काम करने वाले कारीगरों, मज़दूरों पेंटरों की ज़िंदगी की सुरक्षा से कोई मतलब नहीं होता है आखिर क्यों ?
क्या सिर्फ़ पैसा कमाना ही इनका एक मात्र उद्देश्य रह गया है?
नगर निगम ग्रेटर मालवीयनगर जोन का यह मामला है जिसमें उपायुक्त अर्शदीप बरार को लगातार इस सम्बंध में शिकायतें दर्ज की गईं हैं। सिंधी कॉलोनी के पास प्लॉट न.रामगली न.08 के मुख्यमार्ग पर यह अवैध निर्माण जारी है। बिना पार्किंग,18 मीटर से अधिक ऊँची इमारत,बिना निगम स्वीकृति बनकर खड़ी हो गयी है। वाटर हार्वेस्टिंग पर भी बिल्डर्स काम नहीं करते और अवैध बोरवेल खुदवाते हैं दिनों दिन जल स्तर कम होने की यह बड़ी वजह है।इसी के साथ-साथ ज़ीरो सेटबैक पर बनी ये अवैध इमारतें बिना निगम को सभी शुल्क चुकाए बनकर खड़ी हो जाती हैं क्योंकि बिना निगम की मिलीभगत और साँठ गाँठ के कुछ सम्भव नहीं होता। जब प्लॉट पर निर्माण स्वीकृति नहीं लेता बिल्डर तो भू-रूपांतरण,भूमि पुनर्गठन, पार्किंग स्पेस और अधिवास शुल्क यानी सभी शुल्कों से उसे मुक्ति मिल जाती है क्योंकि इमारत का निगम में निर्माण को लेकर कोई रिकॉर्ड नहीं होता। इस प्रकार निगम को राजस्व का भारी नुकसान होता है लेकिन निगम के अधिकारियों व कर्मचारियों की जेबें और मुहँ बन्द कर दिए जाते हैं रिश्वतें बाँटकर!




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