पार्ट 03 : जार पत्रकार संगठन क्यों हो रहा ज़ार ज़ार
आख़िर कमिश्नरेट स्थित जार ऑफिस आम पत्रकार के लिए उपलब्ध क्यों नहीं?
क्यों रात को खुलता है कमिश्नरेट का जार का कार्यालय?
*आख़िरकार जार के पत्रकार सदस्यों की संख्या कितनी है?
जार का विधान पत्र कहाँ हैं
जार के बायलॉज क्या हैं
जार के पत्रकार सदस्यों की सूची क्यों सार्वजनिक नहीं की जाती
आख़िर जार का अस्तित्व क्या है
लगभग 04 वर्ष से जार प्रदेश कार्यकारिणी के नहीं हुए हैं चुनाव
पिछले 04 वर्ष से अनाधिकृत तरीक़े से विराजमान क्यों है जार पदाधिकारी?
जयपुर पुलिस कमिश्नरेट कार्यालय में स्थित जार का कार्यालय किस तरह होता है संचालित?
जार कार्यालय साधारण सदस्यों को नहीं हो रहा उपलब्ध
जार के सदस्य जार कार्यालय का नहीं कर सकते सदुपयोग
आख़िर पूर्व अध्यक्ष हरिबल्लभ मेघवाल किस तरह से बिना चुनाव के बने हुए हैं प्रदेश अध्यक्ष?
आख़िर 04 बार स्वयं इस्तीफ़ा देने वाले महासचिव दीपक शर्मा का क्या है अस्तित्व जार में?
आख़िर मुकेश मिश्रा जिला संयोजक ने बिना वजह क्यों की जिला कार्यकारिणी भंग बिना पूर्व सूचना या बिना बैठक के
आख़िर जार कार्यालय में पत्रकार हित में कितने कार्यक्रम आयोजित किये गए हैं अब तक?
आख़िर जार पत्रकार संगठन का समाज में क्या रहा है अब तक योगदान?
आख़िर जार पत्रकार संगठन ने कितने पत्रकारों के हित में काम किया है।
शालिनी श्रीवास्तव
जयपुर हिलव्यू समाचार।
जार यानी जर्नलिस्ट एसोशिएशन ऑफ राजस्थान
पुलिस कमिश्नरेट कार्यालय एमआई रोड ,जयपुर स्थित पत्रकारों के सबसे बड़े संगठन होने का दावा करने वाला संगठन अपने अस्तित्व के लिए सँघर्ष कर रहा है । यह सँघर्ष महज एक दो साल से नहीं चल रहा है बल्कि काफी लंबे समय से अपनी पहचान की सत्यता के लिए चल रहा है । यह प्रदेश कार्यालय कभी खुलता है और कभी नहीं खुलता है और सबसे मज़े की बात यह है कि इस संग़ठन में पिछले 04 वर्षों से चुनाव नहीं हो रहे है और बिना चुनाव के ही पूर्व पदाधिकारी ही अध्यक्ष ,महासचिव पद सहित अन्य पदों पर विराजमान चले आ रहे हैं।
प्रश्न बहुत हैं मगर उत्तर देने वाला कोई नहीं?
तो क्या शैने-शैने जर्नलिस्ट एसोसिएशन ऑफ राजस्थान अपना अस्तित्व खो रहा है?
तो क्या जार के पदाधिकारी ही दीमक बनकर ख़त्म कर रहे हैं जार के वटवृक्ष को
क्या जार का भविष्य ख़तरे में हैं
ऐसे कई प्रश्नों के साथ बात करेंगे हम आगे अगले अंक में तब तक आइए जार के निष्क्रिय और तानाशाह पदाधिकारियों व जार की अव्यवस्थाओं से पीड़ित पत्रकारों की ज़ुबानी सुनते हैं ज़ार की वास्तविक कहानी