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सूबे की सियासत में कब मिलेगा महिलाओं को उचित प्रतिनिधित्व? -बाबूलाल नागा

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आधी आबादी को पूरा हक कब?

सूबे की सियासत में कब मिलेगा महिलाओं को उचित प्रतिनिधित्व? -बाबूलाल नागा

2024 के लोकसभा चुनावों का ऐलान हो चुका है। राजस्थान में चुनाव दो चरणों 19 व 26 अप्रैल 2024 को सम्पन्न होने हैं। दोनों की प्रमुख पार्टियों भाजपा व कांग्रेस ने सभी 25 लोकसभा सीटों पर अपने-अपने प्रत्याशी तय कर दिए हैं। इस बार भाजपा ने 5 सीटों पर तो कांग्रेस ने 3 सीटों पर महिला प्रत्याशियों को टिकट दिए हैं। भाजपा और कांग्रेस ने महिला वोट बैंक के चलते खूब महिलाओं को सियासत में आरक्षण देने के मुद्दे को उछाला। लेकिन बात जब महिलाओं को टिकट देने की आई है तो तमाम दावे और वादे धराशायी हो गए। हालांकि दोनों सदनों में महिला आरक्षण विधेयक पारित हो चुका है और 2029 लोकसभा चुनाव से यह लागू भी हो जाएगा, लेकिन हकीकत में अगर सियासी दल महिलाओं को प्रतिनिधत्व देने को लेकर गंभीर होते तो 2024 के लोकसभा चुनाव में अपने स्तर पर राजस्थान में महिलाओं को ज्यादा टिकटें देकर नजीर पेश कर सकते थे। लेकिन लगता है कि एक बार फिर राजस्थान महिलाओं को सियासी प्रतिनिधित्व देने की दिशा में पिछड़ गया है।

राजस्थान से लोकसभा चुनावों में पहुंचीं महिलाओं की भागीदारी पर नजर डालें तो वर्ष 1952 से 2019 तक 201 महिलाएं चुनावी मैदान में उतरीं। इनमें से 19 महिलाएं ही लोकसभा में पहुंची हैं। वसुंधरा राजे अब तक इनमें से सबसे ज्यादा पांच बार लोकसभा में प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री गिरिजा व्यास चार बार और जसकौर मीणा, निर्मला कुमारी व उषा मीणा दो-दो बार सांसद चुनी गईं।

राज्य निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 1952 के लोकसभा चुनाव में 2 महिला प्रत्याशी चुनाव में उतरीं, लेकिन जीत एक को भी नहीं मिली। शारदा बाई ने भरतपुर-सवाईमाधोपुर और रानी देवी भार्गव ने सिरोही-पाली सीट से नामांकन दाखिल किया लेकिन दोनों महिलाओं की जमानत जब्त हो गई। 1957 के चुनाव में एक भी महिला चुनाव मैदान में नहीं उतरीं।

वर्ष 1962 में हुए तीसरे आम चुनाव में छह महिलाएं मैदान में उतरीं और जयपुर राजपरिवार की गायत्री देवी ने लोकसभा में पहली बार राजस्थान का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने भी एक महिला प्रत्याशी शारदा देवी, जो कि कांग्रेस से थीं, को डेढ़ लाख मतों से पराजित कर यह गौरव प्राप्त किया था। विदित हो कि जयपुर लोकसभा सीट से लड़ते हुए कुल 2 लाख 46 हजार 516 मतों में से एक लाख 92 हजार नौ सौ नौ मत प्राप्त कर उन्होंने एक रिकॉर्ड कायम किया था, बाद में उनका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज किया गया। राजस्थान की पहली महिला सांसद पूर्व राजमाता गायत्री देवी, स्वतंत्र पार्टी से थीं। विदित हो कि स्वतंत्र पार्टी राजा-महाराजाओं की पार्टी मानी जाती थी और गायत्री देवी एक बार नहीं बल्कि लगातार तीन बार 1962, 1967 व 1971 में लोकसभा में जयपुर का प्रतिनिधित्व किया। 1971 में 4 महिलाओं ने चुनाव लड़ा। दो जीत गईं और दो हार गईं। राजस्थान से पहली बार 2 महिलाएं सांसद पहुंचीं। गायत्री देवी के साथ जोधपुर सीट के लिए निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में पूर्व राजमाता कृष्णा कुमारी ने राजस्थान से दूसरी महिला सदस्य के रूप में लोकसभा में प्रतिनिधित्व किया। 1980 के चुनाव में पहली बार कांग्रेस ने निर्मला कुमारी को टिकट दिया और वे चित्तोड़गढ़ से सांसद चुनी गईं। इसी चुनाव में पहली बार जनजाति क्षेत्रों के लिए आरक्षित दो सीटों पर भी महिलाओं ने चुनाव लड़ा। हालांकि एक की जमानत जब्त हो गई और दूसरी पांचवें स्थान पर रहीं। 1984 के लोकसभा चुनाव में उदयपुर लोकसभा से कांग्रेस की इंदुबाला सुखाड़िया और कांग्रेस की निर्मला कुमारी ने चित्तोड़गढ़ से जीत हासिल की।

1989 में भारतीय जनता पार्टी की प्रत्याशी वसुंधरा राजे ने झालावाड़ सीट से जीत हासिल कर एक मात्र महिला के रूप में लोकसभा में राजस्थान का प्रतिनिधित्व किया। इस चुनाव में कांग्रेस ने तीन महिलाओं को टिकट दिए। एक टिकट जनता दल ने भी दिया। कांग्रेस की तीनों प्रत्याशी चुनाव हार गईं। 1991 में 14 महिलाएं लोकसभा में राजस्थान का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुनाव मैदान में उतरीं लेकिन केवल 4 महिला भाजपा की महेंद्र कुमारी अलवर से, कृष्णेंद्र कौर भरतपुर से व वसुंधरा राजे झालावाड़ से तथा कांग्रेस की डॉक्टर गिरिजा व्यास उदयपुर से चुनी गईं।

चुनाव में औसतन 5 से 6 महिलाएं चुनाव मैदान में उतर रही थीं लेकिन 1991 के बाद इसमें तेजी आई और चुनाव मैदान में उतरने वाली महिलाओं की संख्या 20 से 25 तक हो गईं। आंकड़ों के अनुसार 1996 के लोकसभा चुनावों में राजस्थान से लोकसभा में प्रतिनिधित्व करने वाली महिलाओं की संख्या में वृद्धि हुई और 25 महिलाओं ने नामांकन भरा। इनमें केवल 4 महिला भरतपुर से भाजपा की महारानी दिव्यासिंह, सवाईमाधोपुर से कांग्रेस की उषा मीणा, झालावाड़ से भाजपा की वसुंधरा राजे और उदयपुर से कांग्रेस की गिरिजा व्यास ने जीत हासिल की। 1998 में 20 महिला प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतरीं। इनमें से 3 महिलाएं कांग्रेस की उषा मीणा सवाईमाधोपुर से, प्रभा ठाकुर अजमेर से और भाजपा की वसुंधरा राजे झालावाड़ से जीतीं। वर्ष 1999 में 15 महिलाएं चुनाव में खड़ी हुईं पर 3 महिलाएं सांसद चुनी गईं। इनमें कांग्रेस से गिरिजा व्यास व भाजपा से वसुंधरा राजे, जसकौर मीणा चुनी गईं। इस वर्ष भाजपा ने 2 जबकि कांग्रेस ने 4 महिलाओं गिरिजा व्यास-उदयपुर, प्रभा ठाकुर-अजमेर, महेंद्र कुमारी-अलवर व उषा मीणा-सवाईमाधोपुर से टिकट दिया था। वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में राजस्थान से 17 महिलाएं खड़ी हुईं। पर 2 महिलाएं सांसद चुनी गईं। इस वर्ष भाजपा ने 4 महिला प्रत्याशियों संतोष अहलावत-झुंझुनूं, जसकौर मीणा-सवाई माधोपुर, किरण माहेश्वरी -उदयपुर व बी. सुशीला-अजमेर को टिकट दिया। इनमें किरण माहेश्वरी व बी. सुशीला की जीत हुईं। कांग्रेस ने एकमात्र महिला गिरिजा व्यास को उदयपुर से टिकट दिया था लेकिन उनकी हार हुईं।

वर्ष 2009 में राजस्थान से सबसे ज्यादा 31 महिला प्रत्याशियों ने भाग्य आजमाया। इस वर्ष लोकसभा के लिए राजस्थान से 3 महिला सांसद चुनी गईं। ये तीनों महिला सांसद कांग्रेस पार्टी से थीं। कांग्रेस ने 5 महिलाओं ज्योति मिर्धा-नागौर, चन्द्रेश कुमारी-जोधपुर, संध्या चौधरी-जालौर, गिरिजा व्यास-चित्तोड़गढ़ व उर्मिला जैन भाया-झालावाड़-बारां से टिकट दिया। इनमें से 3 महिलाएं ज्योति मिर्धा, चन्द्रेश कुमारी व गिरिजा व्यास जीतकर सांसद चुनी गईं। इस वर्ष भाजपा ने 3 महिलाओं डॉ. किरण यादव-अलवर, किरण माहेश्वरी -अजमेर व बिंदु चौधरी-नागौर से टिकट दिया। पर तीनों की ही हार हुईं। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में राजस्थान से 27 महिला प्रत्याशियों में से एक मात्र महिला सांसद बीजेपी की संतोष अहलावत चुनी गई थीं। इस साल कांग्रेस ने प्रदेश की 25 में से 6 सीटों पर महिलाओं को टिकट दिया। इनमें राजबाला ओला-झुंझुनूं, डॉ. ज्योति मिर्धा-नागौर, मुन्नी देवी गोदारा-पाली, चन्द्रेश कुमारी-जोधपुर, रेशम मालवीया-बांसवाड़ा व गिरिजा व्यास- चित्तोड़गढ़ से महिला प्रत्याशी थीं जबकि बीजेपी ने सिर्फ एक महिला उम्मीदवार संतोष अहलावत को टिकट दिया और उनकी जीत हुई।

वर्ष 2019 में राजस्थान से 21 महिला प्रत्याशियों ने दावेदारी ठोकी पर 3 महिलाएं सांसद चुनी गईं। इस साल भारतीय जनता पार्टी ने 25 में से 3 महिला सांसदों को टिकट दिया था और तीनों ही जीत कर संसद पहुंचीं। इनमें राजसमंद से दीया कुमारी, दौसा से जसकौर मीणा और भरतपुर से रंजीता कोली हैं। जबकि कांग्रेस ने 4 महिलाओं कृष्णा पूनिया-जयपुर ग्रामीण, ज्योति खंडेलवाल-जयपुर शहर, सविता मीणा-दौसा व ज्योति मिर्धा-नागौर को टिकट दिया था।

वर्ष 2024 के लिए भाजपा व कांग्रेस ने सभी 25 सीटों पर अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं। लोकसभा चुनाव के रण में भाजपा ने 25 में से 5 सीटों पर ज्योति मिर्धा-नागौर, मंजू शर्मा जयपुर शहर, महिमा सिंह-राजसमंद, प्रियंका बैलान-गंगानगर और इंदु देवी जाटव-करौली-धौलपुर को मैदान में उतारा है। कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के लिए 3 महिला उम्मीदवारों संजना जाटव-भरतपुर, उर्मिला जैन भाया-झालावाड़-बारां, संगीता बेनीवाल-पाली को मैदान में उतारा है। खास बात यह है कि जिन आठ सीटों पर भाजपा या कांग्रेस ने महिला उम्मीदवार उतारे हैं, उनमें एक भी सीट पर महिलाएं आमने-सामने नहीं हैं। इन आठों सीट पर महिलाओं का मुकाबला दूसरी पार्टी के पुरुष प्रत्याशी से होगा।

राजस्थान में कांग्रेस और भाजपा दो ही प्रमुख दल हैं। और दोनों दलों का महिला उम्मीदवारी के संदर्भ में इतिहास बहुत उत्साहजनक नहीं है। कांग्रेस हालांकि पहले लोकसभा चुनाव से ही मैदान में रही है लेकिन राजस्थान में उसने 1980 में पहली बार महिला प्रत्याशी निर्मला कुमारी को टिकट दिया। वहीं भाजपा का तो जन्म ही 1980 में हुआ और इसने 1984 में ही दो महिलाओं को टिकट दे दिया था। हालांकि दोनों ही पार्टियां हर लोकसभा चुनाव में 25 सीटों पर सिर्फ दो या तीन-तीन महिलाओं को ही टिकट देते आए हैं। अब तक भाजपा ने 27 महिला प्रत्याशियों को और कांग्रेस ने 34 टिकट दिए हैं। ऐसे में हर चुनाव में महज गिनती की सांसद चुनकर लोकसभा पहुंचीं।

बहरहाल, नारी सशक्तिकरण के दावे भले ही किए जा रहे हैं, लेकिन चुनावी मैदान में महिलाओं को पूरा हक नहीं मिला है। महिलाओं को अधिक प्रतिनिधित्व देने की बात कहकर तालियां बटोरने वाले ये राजनीतिक दल टिकट बांटने के समय अपनी बात पर कायम नहीं रह पाते। राजनीति में पुरुषों का दंभ और दादागिरी इतनी है कि वे महिलाओं के राजनीति में आने का लगातार विरोध करते रहे हैं। यही कारण है सही मायने में राजनीति में महिलाओं को मौका नहीं मिल पाता। (लेखक भारत अपडेट के संपादक व स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)




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