निगम का सरकारी काग़ज़ बना साधारण पैम्फलेट और निगम अधिकारी बने बाज़ार का बिकाऊ सामान: बिल्डर्स
सरकारी नोटिस को साधारण पैम्फलेट समझ कर फाड़ रहे: अवैधनिर्माणकर्ता बिल्डर्स
खरीद रखे हैं निगम अधिकारी कर्मचारी बाज़ार में बोल रहे बिल्डर्स
क्या सरकारी कागज़ की कोई औक़ात नहीं रही अवैध निर्माणकर्ताओं,अतिक्रमणकारियों की नज़र में जवाब दे निगम हैरीटेज और ग्रेटर जयपुर ?
इन अवैध बिल्डर्स निर्माणकर्ताओं,अतिक्रमणकारियों का दुस्साहस इतना बढ़ रहा है कि ये सरकारी फ़रमान यानी नोटिस को तो फाड़ ही देते हैं साथ ही निगम अधिकारियों व कर्मचारियों को खरीद लेने की बात खुलेआम कहते हैं
और बड़े दमखम से कहते है कि कोई कुछ नहीं कर सकता सबको पैसा खिलाया है फिर सबसे बड़ी बात यह कि निगम किसी भी तरह का इन सब बातों पर एक्शन नहीं लेता आखिर ऐसी क्या मज़बूरी नगर निगमों की कि FIR दर्ज नहीं करवाते ऐसे बदमाश और गुंदागिर्दी कर रहे अवैधनिर्माणकर्ता, अतिक्रमणकारी बिल्डर्स के ख़िलाफ़?
शालिनी श्रीवास्तव
हिलव्यू समाचार, जयपुर
बिना निगम अनुमति के ज़ीरोसेट बैक पर बनती अवैध बहुमंज़िला इमारतें हैरीटेज और ग्रेटर निगम क्षेत्रों में फैले करप्शन और मिलीभगत को उजागर करती है
ये अवैधनिर्माण और अतिक्रमण सरकारी राजस्व को तो चूना तो लगाते ही हैं और साथ ही आम जनता के बीच निगम की छवि को एकदम बौना,कमज़ोर और भ्रष्टाचारी साबित करते हैं।
हर नगर निगम जोन चाहे वो हैरीटेज हो या ग्रेटर अवैध निर्माणों व अतिक्रमणों पर ज़्यादातर सुस्त,लाचार और निष्क्रिय क्यों हैं? यह एक ऐसा प्रश्न है जो सरकार के जर्जर सिस्टम को पुख्ता रूप से प्रकट करता है।सरकारी कार्यालयों में हो रहे फाइल्स के घोटालों को दस्तावेजों सहित सबूत की आवश्यकता होती है लेकिन अवैधनिर्माण और अतिक्रमण के मामले में तो साक्षात ज़िंदा सबूत अवैध इमारतों के रूप में हर गली हर चौराहे पर खड़े हैं।
अंधी पीटी हुई नगर निगम की लचर व्यवस्था कितनी कमज़ोर और भ्रष्ट है यह अवैध निर्माण और अतिक्रमण प्रमाणित करते हैं
निगम में सीज़र या ध्वस्तीकरण की कार्यवाही से पहले नोटिस दिया जाता है जिसकी समय सीमा 3 दिन की होती है जिसमें अवैध निर्माणकर्ता को निर्माण स्वीकृति से सम्बंधित दस्तावेज़ पेश करने होते हैं। 3 दिन निकलने से पहले ही या 3 दिन निकल जाने के बाद उस नोटिस को इन बदमाशों द्वारा फाड़ दिया जाता है। फिर दूसरा नोटिस फिर तीसरा नोटिस यह खेल चलता है। या यूँ कहें कि आपसी साँठगाँठ से यह खेल ज़्यादातर शांत हो जाता है बिल्डर्स और निगम के बीच मिलीभगत जो हो जाती है। ऊपर से लेकर नीचे तक का सिस्टम का ईमान बाज़ार में कौड़ियों के भाव बिक जाता है और फिर अवैध निर्माणकर्ता,अतिक्रमणकारी बिल्डर फिर से उसी दुस्साहस के साथ अवैध निर्माण जारी रखता है और अड़ौसी-पड़ौसी को सीधे रूप से एक सन्देश देता है कि सरकारी कागज़ को फाड़ना एक खेल की तरह है और किसी भी निगम अधिकारी कर्मचारी को खरीदना बाज़ार में पड़ी बिकाऊ वस्तु की तरह।
ऐसे में गलती से निगम की कुम्भकर्णी नींद खुल जाती है थोड़ा ईमान धिक्कारने लगता है तो नोटिसों और सीजर का खेल चलता है लेकिन ध्वस्तीकरण कभी नहीं होता
यानी गुंजाइश बनी रहती है ले-देकर मामला निपटाने की।
जहाँ एक आम जन सरकारी कागज़ के नाम से भी डर जाता है और वहाँ दूसरी ओर अवैध निर्माणकर्ता सरकारी कागज़ को मात्र एक फेम्पलेट की तरह रद्दी में फाड़कर फैंक देते हैं और बेफिक्र होकर अपनी गतिविधियों को जारी रखते हैं और बिल्डिंग बायलॉज के नियमों को तिलांजली देते रहते हैं।
क्या ज़्यादातर नगर निगम अपना ईमान और कर्मठता बेचकर वाकई खा गए हैं कि उन्हें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता बिल्डर्स द्वारा बिकाऊ और भ्रष्ट कहने पर?