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मीडिया की औकात दिखाता मुख्यमंत्री गहलोत का वीडियो हुआ वायरल

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लगातार वायरल हो रहा राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत का यह वीडियो

सीएम गहलोत इसे खारिज़ करें कि यह वीडियो फेक है या माफ़ी माँगे मीडिया से

क्या अशोक गहलोत की विज्ञापन नीति “इस हाथ दे इस हाथ ले” की धारणा पर आधारित?

वीडियो में अशोक गहलोत बोल रहे हैं: ◆हमने तय कर लिया भैया जो सरकार की स्कीमों का प्रचार प्रसार करेगा उसको विज्ञापन मिलेगा!

हम पूरी मोनिटरिंग कर रहे हैं आप क्या न्यूज़ लगा रहे हो ? सरकार को गालियाँ दो फिर विज्ञापन भी पाओ ऐसा नहीं चलेगा!

कमाल है आप विज्ञापन भी ले रहे हो दो करोड़-तीन करोड़ के और फिर हम रिकवेस्ट भी करें कि यह आइटम लगा दो यार,कमाल है!

हिलव्यू समाचार संपादक शालिनी श्रीवास्तव की स्पेशल रिपोर्ट :
किसी भी राज्य का राजा मुख्यमंत्री होता है। जनता के साथ-साथ हर विभाग,हर संस्था हर सेवा करने वाली एजेंसी, राज्य से जुड़े हर एक व्यक्ति के प्रति उनकी ज़िम्मेदारी एक पिता की भांति बढ़ जाती है लेकिन इस तरह सन्तानों में भेद करने वाले पिता को आप क्या कहेंगे?

इस वायरल वीडियो में खुद मुख्यमंत्री ही उड़ा रहे है मीडिया का मजाक , वीडियो में कहा जा रहा है की विज्ञापन भी दो और गालियां भी खाओ । सरकार का प्रचार करेगा उस को ही मिलेगा विज्ञापन ,एक एक दो दो तीन करोड़ के विज्ञापन ले रहे हो , इस पर उनके कथित चाटुकार भी वहाँ मीडिया का मखोल उड़ाते सुनाई पड रहे है , अब यह वीडियो कितना सही है ,हम इसकी पुष्टि नहीं करते ।

बताया जा रहा है की यह वीडियो गहलोत सरकार की पहली वर्षगांठ का हैं । लेकिन हिलव्यू समाचार द्वारा ये वीडियो दिखाने का मकसद सिर्फ यह है की अगर ये वीडियो सही है तो अब तक जितने बड़े विज्ञापन किसी भी मीडिया संगठन को मिले हैं उसकी प्रासंगिकता और उसकी ईमानदारी पर भी सवाल खड़ा करता है ।

यदि यह वायरल वीडियो फेक है तो खुद सीएम गहलोत को इसका खंडन करना चाहिए , साथ ही सरकारी विज्ञापनों में चल रहे बंदरबाट पर भी ध्यान देना चाहिए । डी.आई.पी.आर द्वारा विज्ञापन जारी करने में शायद इन्ही दिशा निर्देशों का प्रभाव है ।क्या सीएम गहलोत इस वायरल वीडियो का करेंगें खंडन

प्रेस,पत्रकारिता या मीडिया को संविधान का चौथा स्तंभ कहा जाता है यानी देश की दिशा और दशा में मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। किसी भी मीडिया का फ़र्ज़ है कर्तव्य है कि वो जनता के समक्ष सच रखे और विज्ञापन लेना या माँगना किसी भी मीडिया का जन्मसिद्ध अधिकार है। शासन-प्रशासन और जनता के मध्य मीडिया एक माध्यम है जो शासन-प्रशासन की कार्यविधियों, योजनाओं व नीति-निर्देशों को जनता के बीच पहुँचाए। इसी के साथ जनता की पीड़ा,प्रार्थना,माँग,आवश्यकता, ज़रूरत,शिक़ायत में मीडिया शासन-प्रशासन तक पहुँचने का सेतु बने। सरकार की ग़लत व अनर्गल नीतियों,भ्रष्टाचार या ग़लत निर्देशों का विरोध करना या जनता की आवाज़ बनना भी मीडिया का महत्वपूर्ण कर्तव्य है।

ऐसे में किसी राज्य का मुख्यमंत्री अगर यह फ़रमान सुना दे कि हमारा प्रचार-प्रसार करो तो ही विज्ञापन मिलेंगे तो क्या यह निरंकुश शासन का प्रतीक नहीं जो मीडिया से सच को दबाकर केवल और केवल सरकार के गुणगान करने का खुले आम फरमान जारी कर रहा है।अभिव्यक्ति की आज़ादी व प्रेस की स्वतंत्रता को बंदी बनाकर क्या यह लोकतंत्र पर कुठाराघात नहीं?




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