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संवैधानिक मूल्यों पर ही टिका है देश का विकास

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(गणतंत्र दिवस विशेष) नृपेन्द्र अभिषेक नृप _छपरा बिहार

“भारत के गणतंत्र का, सारे जग में मान,
दशकों से खिल रही, उसकी अद्भुत शान,
सब धर्मो को देकर मान रचा गया इतिहास का,
इसलिए हर देशवासी को इसमें है विश्वास।”

गणतंत्र दिवस के आते ही स्मृतियों का सैलाब उमड़ आता है, हमारे स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास स्मृति के वातावरण से झाँकने लगता है। गणतंत्र दिवस  हमारी प्राचीन संस्कृति का गरिमा का गौरव दिवस है। भारत आज लोकतंत्र की मशाल जलाते हुए दुनिया में आशा-उमंग, शांति के आकर्षण का केंद्र बिंदु बन गया है। आजादी को संजोए रखना  इतना भी आसान नही होता  इसके लिए अपनी नियम, नीति औऱ योजनाएं बनाना और उनको क्रियान्वित करना बहुत ही जरुरी था।  जिसके लिए भारत के संविधान की रचना करना और उस संविधान में नियम कानून और शर्तो को लागू करना बहुत आवश्यक था।  इसके लिये एक समिति बनाई गई और उस समिति के द्वारा संविधान का निर्माण किया गया और 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू किया गया। गणतंत्र को लोकतंत्र, जनतंत्र व प्रजातंत्र भी कहते हैं, जिसका अर्थ है – प्रजा का राज्य या प्रजा का शासन। संविधान के बारे में संविधान निर्माता भीमराव अंबेडकर कहते है – “मुझे लगता है यह संविधान व्यवहारिक है, ये शांति और युद्ध दोनों के समय देश को बांधे रखने के लिए लचीला भी है और मजबूत भी। वास्तव में, मैं यह कह सकता हूँ कि यदि नए संविधान के अंतर्गत कुछ गलत होता है, तो उसका कारण ये नहीं होगा कि हमारा संविधान खराब है। हमें ये कहना होगा कि ये मनुष्य की नीचता थी।” स्पष्ट है कि भारत ने एक ऐसा संविधान का निर्माण किया था जिसपर हर भारतीय को गर्व होना चाहिए।
26 जनवरी 1950 को, हमारा देश भारत संप्रभु, धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी, और लोकतांत्रिक, गणराज्य के रुप में घोषित हुआ । गणतंत्र दिवस मनाने का मुख्य कारण यह है कि इस दिन हमारे देश का संविधान प्रभाव में आया था।26 जनवरी 1950 के दिन ‘भारत सरकार अधिनियम’ को हटाकर भारत के नवनिर्मित संविधान को लागू किया गया। इसलिए उस दिन से 26 जनवरी के इस दिन को भारत में गणतंत्र  दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। यह भारत के तीन राष्ट्रीय पर्वों में से एक है । इस दिन पहली बार 26 जनवरी 1930 में पूर्ण स्वराज का कार्यक्रम मनाया गया। जिसमें अंग्रेजी हुकूमत से पूर्ण आजादी के प्राप्ति का प्रण लिया गया था।

सोचने योग्य:***

आज हमारा संविधान विभिन्न बीमारियों से ग्रसित हो गया है। भ्रष्टाचार , बलात्कार , प्रदूषण , जनसंख्या नियंत्रण जैसे अनेक समस्याओं ने भारत माँ को लहूलुहान कर दिया है। आज भी हमारा गणतंत्र  कितनी ही कंटीली झाड़ियों में फँसा हुआ प्रतीत होता है। अनायास ही हमारा ध्यान गणतंत्र की स्थापना से लेकर ‘क्या पाया, क्या खोया’ के लेखे−जोखे की तरफ खींचने लगता है। इस ऐतिहासिक अवसर को हमने मात्र आयोजनात्मक स्वरूप दिया है, अब इसे प्रयोजनात्मक स्वरूप दिये जाने की जरूरत है। इस दिन हर भारतीय को अपने देश में शांति, सौहार्द और विकास के लिये संकल्पित होना चाहिए। कर्तव्य−पालन के प्रति सतत जागरूकता से ही हम अपने अधिकारों को निरापद रखने वाले गणतंत्र का पर्व सार्थक रूप में मना सकेंगे और तभी लोकतंत्र और संविधान को बचाए रखने का हमारा संकल्प साकार होगा।बी. आर. अम्बेडकर ने भी समस्याओ के समाधान हेतु कानून लाने के बारे में कहा था-  “क़ानून व व्यवस्था राजनीतिक शरीर की दवा है और जब राजनीतिक शरीर बीमार पड़ने लगे तो दवा जरुर देनी चाहिए।”






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