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अध्यात्मिकता व त्यौहारों का देश भारतवर्ष

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विश्वभर में आज भी भारत की वर्तमान काल में भी एक विशेष प्रकार की अद्भुत छवि है। विश्वगुरु कहा जाने वाला भारतवर्ष निसंदेह आज तकनीकी रूप से, सामरिक दृष्टि से तथा आर्थिक रूप से सर्वोपरि न हो किन्तु आध्यात्मिकता में आज भी भारत का विश्वभर में डंका बजता है। यद्यपि अलग-अलग लोक संस्कृति, अलग-अलग वेषभूषा व भाषा, अलग-अलग त्यौहारों से सुसज्जित भारत के लोगों के लिए शिव-पार्वती, राम-सीता, राधा-कृष्ण, देवी शक्ति, बजरंगबली एक ही है। त्यौहारों के नाम भिन्न हो सकते हैं किंतु उद्देश्य एक ही है।
हम विद्यालय काल से ही पढ़ते आये हैं कि भारत त्यौहारों का देश है। यहां के प्रत्येक राज्य, शहर, ग्रामीण कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जहां वर्षभर त्यौहार न मनायें जाते हो। पूरे वर्ष में हर व्यक्ति को अक्टूबर और नवंबर की प्रतिक्षा इसीलिए रहती है क्योंकि इन दो महीनों में अधिकतम व्रत और त्यौहार आते हैं।
शर्दकालीन नवरात्र से प्रारंभ होकर दुर्गा अष्टमी, विजयादशमी, छठ, करवाचौथ, झांकरी, अहोई अष्टमी , धनतेरस, दीपावली, गोवर्धन व भैयादूज जैसे कई प्रमुख त्योहार इन महीनों में आते हैं। उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, बिहार, बंगाल, उत्तर भारत में ये प्रमुख त्योहार धूमधाम से मनाये जाते हैं। 
धनतेरस का पर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन मनाया जाता है। इसी दिन से दीपावली के पांच दिवसीय पर्व की शुरुआत हो जाती है। धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि और धन के देवता कुबेर की पूजा का विधान है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान धन्वंतरि देव का जन्म हुआ था। इस कारण इसे धन्वंतरि जयंती या धन त्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है। धनतेरस के दिन बाजार से बर्तन, सोना, चांदी या कोई नया सामान खरीदने का विधान है।
दीपावाली के दिन परिवार के सभी सदस्य अपने घरों की साफ-सफाई करते हैं। घर को खूब सजाते हैं। दूसरे स्थानों पर पढ़ने वाले अथवा व्यवसाय, नौकरी करने वाले सदस्य भी छुट्टियां लेकर परिवार के साथ रंगोली आदि बनाकर खुशियों के साथ पर्व मनाते हैं। संयुक्त परिवार सदस्यों के साथ देवता-पितरों का पूजन करते हैं। गोवर्धन के दिन विशेषरूप से कृषि से जुड़े परिवार गोबर का देवता बनाकर गन्ना आदि फसल का प्रतीक रखकर पूजन करते हैं। 
हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भाई दूज का त्योहार मनाया जाता है। भाई दूज का पर्व रक्षाबंधन की तरह भाई-बहन के आपसी प्रेम और स्नेह का प्रतीक होता है। भाई दूज के मौक पर बहन भाई के माथे पर टीका करती हैं, आरती उतारती है और उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं।
ये त्यौहार व्यक्ति के जीवन में ऊर्जा, उत्साह और आन्नद लेकर आते हैं। व्यक्ति को जीवन जीने के लिए इन्हें तीनों वृत्ति की सर्वाधिक आवश्यकता होती है। । अतः हमें त्यौहारों का महत्व समझते हुए उचित ढंग से ही परिवार के सदस्यों के साथ इन्हें मनाना चाहिए। 

 डॉ उमेश प्रताप वत्स
यमुनानगर, हरियाणा




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