कुलदीप गुप्ता : जयपुर हिलव्यू समाचार। कजरा मोहब्बत वाला अँखियों में ऐसा डाला… ले के पहला पहला प्यार भर के आँखों में ख़ुमार …
कभी आर कभी पार लागा तीर ए नज़र ….. जैसे अनगिनत शानदार गानों को अपनी सुरीली आवाज़ देकर लाखों लोगों के दिलों पर राज़ कर भारतीय फ़िल्म इंडस्ट्री को ऊँचाइयों पर पहुँचाने वाली एक ऐसी शख़्सियत जिनकी आवाज़ जितनी मधुर एवं सुंदर थी उतना ही सुंदर उनका व्यक्तित्व था इतने शानदार व्यक्तिव की धनी कोई और नहीं बल्कि मशहूर पार्श्व गायिका शमशाद बेगम थी जिनका आज जन्मदिन है।
14 अप्रैल 1919 को अमृतसर पंजाब में जन्म लेने वाली शमशाद बेगम भारतीय फ़िल्म इंडस्ट्री की प्रसिद्ध और प्रमुख पार्श्व गायिकाओं में से एक थी । 16 दिसम्बर 1947 को पहली बार लाहौर के पेशावर रेडियो से अपनी मधुर आवाज़ से जनता के सामने आई और उसके बाद इन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। पहली बार गाना गाने के लिए शमशाद बेगम को 15 रुपये का मेहनताना मिला था । शमशाद बेगम का बचपन से ही फ़िल्मों के प्रति रुझान था और इसी रुझान ने शमशाद बेगम को संगीत की दुनिया में उत्कृष्ट पार्श्व गायिका के रूप में स्थान दिलाया। शमशाद बेगम ने के एल सहगल अभिनीत देवदास फ़िल्म को चौदह बार देखा और उस वक़्त के प्रसिद्ध गायक एवम अभिनेता के.एल. सहगल से काफी प्रभावित थीं । इनके इस हुनर को सबसे पहले महान संगीतकार नौशाद और ओ पी नैय्यर ने पहचाना । 50 से लेकर 70 के दशक तक शमशाद बेगम सभी संगीतकारों की पहली पसंद थी ।
शमशाद बेगम ने अपनी ज़िन्दगी को एक बहती नदी की तरह जिया और हर पल अपने दिल की आवाज़ को सुनकर फैसला लिया। इसका उदारहण उनकी व्यक्तिगत ज़िन्दगी का सबसे बड़ा फैसला रहा । मुस्लिम परिवार से आने वाली शमशाद बेगम ने मात्र 15 वर्ष की आयु में हिन्दू परिवार में जन्में गणपत लाल से विवाह कर सबको चौंका दिया। मदर इंडिया, मुग़ल ए आज़म, पतंगा, आरपार, सी आई डी, बैजू बावरा, मेला, किस्मत जैसी सुपरहिट फ़िल्मों में गाने गाकर एक नया इतिहास रच दिया था। शमशाद बेगम द्वारा गाये गये लगभग सभी सुपर डुपर हिट गानों को रिमिक्स किया गया और रिमिक्स वर्जन ने भी उतनी ही धूम मचाई जितनी ओरोजिनल गानों ने धूम मचाई थी यही वजह थी कि शमशाद बेगम को क्वीन ऑफ रिमिक्स के ख़िताब से नवाज़ा गया। अपने फिल्मी कैरियर के दौरान लगभग 6000 से ज़्यादा गाने विभिन्न भाषाओं में गाये।
जिसकी आवाज़ के लगभग हर उम्र वर्ग के लोग दीवाने थे वो स्वयं को यानी शमशाद बेगम अपने आप को ख़ूबसूरत नहीं समझती थी यहीं वजह रही कि शमशाद बेगम किसी भी पार्टी के दौरान बहुत कम फ़ोटो खिंचवाती थीं और बहुत कम कैमरे को फेस करती थी। भारतीय फ़िल्म इंडस्ट्री को अपनी आवाज़ के माध्यम से विशेष ऊँचाइयों पर पहुँचाने के लिए भारत सरकार द्वारा उन्हें वर्ष 2009 में पदम भूषण जैसे उत्कृष्ट सम्मान से सम्मानित किया गया साथ ही इसी वर्ष उन्हें प्रेस्टीजियस ओ पी नैय्यर अवार्ड 2009 से भी सम्मानित किया गया था। मख़मली ख़नकदार आवाज़ की मल्लिका शमशाद बेगम के अस्तित्व को सुर की सरताज़ कहना उचित होगा।
23 अप्रैल 2013 को वे दुनिया को विदा कह गयीं लेकिन आवाज़ की दुनिया ही नहीं हर दिल पर आज भी उनकी आवाज़ राज करती है। हिलव्यू समाचार परिवार की तरफ़ ओर से अमर आवाज़ को जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएँ।