गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर
मुरदे तो पक्के मुरदे ही होते हैं,
इनको शव, लोथ , लाश, मिट्टी
चाहे कुछ भी कहो ये बुरा नहीं मनाते,
इनसे कैसा भी सलूक करो कभी शिकायत नहीं करते,
मुरदों को गाड़ दो , मुरदों को जला दो . मुरदों को बहा दो
मुरदों के टुकड़े कर दो , मुरदे कुछ नहीं कहेंगे,
मुरदों के तमाम काम जिंदा लोगों को ही करने पड़ते हैं,
क्योंकि मुरदों को ठिकाने लगाना जरूरी है,
इन्हें ठिकाने नहीं लगाया तो दशों दिशाओं मेँ
सड़ांध के कारण कोई जी ना सकेगा,
इसलिए मुरदों को जितना जल्दी हो सके
ठिकाने लगाया जाता है,
चूंकि मुरदे अपने लिये कुछ नहीं कर सकते,
इसलिए उनके लिये जिंदा व्यक्तियों
सब कुछ करना पड़ता है।