BREAKING NEWS
Search
HS News

हमें अपनी खबर भेजे

Click Here!

Your browser is not supported for the Live Clock Timer, please visit the Support Center for support.

प्रीत पीत बसंत बाहर,चाहत,आकर्षण और प्यार

202

बसंत की पीली सरसों लगती बहुत प्रेम प्रतिरूप। मैं आकाश व धरा ने धर लिया दुल्हन जैसा रूप।।


लेखक:रामावतार कुमावत

रामावतार कुमावत

प्रेम और प्रीत का रङ्ग पीला और गुलाबी होता हैं।प्रेम जब पूर्णता भर दे तो आंखे बंद हो जाती हैं,तब उसका रंग पवित्र पीत हो जाता है।हल्दी,सरसो,गेंदा की तरह।तब प्रेमी अपने प्रिय का नाम सुन कर ही आनन्द में डूब जाता है और प्रेम जब उन्मत्त कर दे तो उसका रंग गुलाबी हो जाता है।तब प्रेमी मरीचिका में फंसे मृग की तरह दौड़ दौड़ कर प्रिय को ढूंढने लगता है।उसे पाने का हर जतन करने लगता है।

गुलाब का सौंदर्य चटक रंग,आंखें चुंधियाने वाला है।अपनी मोहक खुशबू को समेटे,लाल गाउन वाली हीरोइन,गुलाबी साड़ी वाली राजकुमारी जैसा सौन्दर्य में विशिष्टता लिए होता है।मेहरुनिशा का ग़ुलाब,इश्क में डूबी शहजादियों का गुलाब,राजा महाराजाओं के बाग बगीचों में लगा हुआ गुलाब प्रेम का प्रतीक है।बसंत आगमन पर अपनी प्रेयसी का हाथ पकड़ कर खिली हुई सरसो के खेतों में घूमना,कुंज गुलाब भ्रमण करना,प्रेम इजहार के तरीके हैं।बालक के रूप में बसंत ऋतु के आगमन का इंतजार और बसंत पंचमी पर सरसों के फूलों से भरे खेत मनमोहक देखें।अब समझ में आया कि सरसों के फूलों का रंग प्रकृति के प्रेम का रंग है।सरसो के फूलों के पीतवर्ण में,प्रेम के साथ साथ एक पवित्र आभा और मादक मन मोहिनी खुशबू होती है।इसीलिए तब सरसो के फूलों पर मन चहक उठता।सरसो के फूलों से भरी प्रकृति,उस बान (तेल चढी) बैठी हुई,हल्दी से नहाई हुई लड़की की तरह लगती,जिसका लग्न चढ़ गया हो।अपनो के हाथ से हल्दी रंग कर भेजी बनड़ी और तीन दिन पहले ही विदा हो कर आई नई दुल्हन की तरह प्रकृति लगती है जो पीली चुंदरी पहने अपने आंगन में पायल की रुनझुन से सौभाग्य बिखेरती चलती है।

कहते हैं कि भारत में प्यार के मौसम का प्रतीक यह बसंत दो बार आता है। पहला फागुन मास में दूसरा श्रावण मास में।बसंत ऋतु में प्रकृति चारों ओर अपने खिले हुए पुष्पों सरसों के पीले फूलों से लदे हुए खेत अमलतास के सुर्ख लाल फूल चारों ओर फैला हुआ अल्हड़ पन एक मधुर संगीत और एक नए रोमांस प्रकृति और इंसान में लेकर आता है। श्रावण मास में प्रकृति स्वयं प्रेम रस मस्त होकर प्रेम स्निग्ध होकर स्नान करती है।प्यार या यूं कहें कि मन को महसूस होने वाला रोमांस,खुला खुला सा उन्मुक्त मन, प्रकृति के साथ रिदम करता हुआ और सकारात्मक ऊर्जा के संचरण का उच्चतम स्तर पर प्राप्त करता है।संसार में प्यार,जीवन का आधार है और मनुष्य की उत्पत्ति का प्राथमिक स्रोत भी।प्यार को अलग-अलग रिश्तो के साथ अलग-अलग परिभाषाओं के साथ बांधा गया है।प्यार की,संस्कृतियों और समाज की परंपराओं और सभ्यताओं ने अपनी-अपनी परिभाषाएं बना ली है।आदिम काल से पाषाण युगीन मानव की प्रकृति के साथ जीने के लिए संघर्ष और उसके बाद बनाई गई तारतम्यता और जीवन यापन के जतन में ऊर्जा संचरण का काम मौसम ही करते रहे होंगे।और मानवीय नस्ल को आगे बढ़ाने का काम,प्यार के बिना संभव नहीं हुआ है।और स्त्री पुरुष के बीच का प्यार,स्वभाविक आकर्षण तो था ही,साथ ही आपसी समझ और दूसरे के प्रति समर्पण का प्रतीक भी है।

यूँ होने को तो प्यार सबको होता है।हमको आपको सबको। पर धीरे धीरे करके प्यार के मायने बदलने लगते हैं। इंसान की उम्र के साथ भी और युगों के कालचक्र में समय काल के साथ भी। पहले प्यार स्कूल कॉलेज में,एक दूसरे को,हर दिन चोरी चोरी देख कर धीरे धीरे होता था।फिर नोट्बुक इक्स्चेंज होती थी।घर आकर रात को जब पढ़ने बैठते और यूँ ही आख़िरी पन्ना पलटते तो कुछ लिख कर काटा हुआ रहता था।बहुत देर तक देखने से पता चलता था की आपका ही नाम लिख कर काटा हुआ है। और फिर अचानक चेहरे पर एक शर्मो हया वाली मुस्कान आ जाती।उस समय जो फिलिंग्स संवेदनाएं भावनाएं एक दूसरे के प्रति आती थी वह प्यार नहीं था तो क्या था।परन्तु उसे तुरंत क़ाबू करना होता था कि कही कोई देख न ले और ये न पूछ बैठे क्यूँ हंस रहा/रही है।प्रेम में हँसने के भी अलग मायने है।अलग अलग वक्त की हँसी भी जुदा जुदा होती है।फिर यूँ ही नोटबुक इक्स्चेंज होते रहते।छूट्टी के वक़्त आते जाते नज़रें मिल जाती और एक दूसरे को देखने की एक कशिश और तल्ख हमेशा बनी रहती।नज़रें मिलते ही नज़रें फलों से लदी टहनी की तरह झुक जाती।नोटबुक का आदान-प्रदान तो बहाना होता असली मकसद नोटबुक के मांगने में सामने वाले की अप्रत्यक्ष रूप से प्रतिभा प्रशंसा से चाहत का इजहार करना और नोटबुक के लौटाने में अपनी चाहत और भावनाओं का इजहार और अभिव्यक्ति से अवगत भी कराना और नहीं कराने का नाटक भी करना होता था। नोटबुक व नोट्स वापिस आते तो उसमे एक छोटा सा लव नोट या पहला लव लेटर मिलता।जिसे आप सबसे छुपा कर रख देते और रात को सबके सोने के बाद लैम्प को धीरे से बढ़ा कर धड़कते दिल से पढ़ना शुरू करते।उसमे लिखी हर बात सच लगती और जीवन सुंदर लगने लगता।पढ़ने के बाद सारी दुनिया बदली बदली सी लगने लगती।दुनिया और सपने बड़े लगने लगते।अहसासों में जो कुछ भी घटता सब नया होता।पहली बार झूला झूलते हुए शरीर में उठने वाली सिहरन सा एहसास होता। झूला जब ऊंचाई की तरफ जाता है तब जैसा एक अलग एहसास होने लगता।यह कागज का टुकड़ा और पत्र,किताब का जिल्द खोलकर उसके अंदर छुपा दिया जाता और न जाने कब उसमें लिखे शब्दों और भावों को जीते हुए उनमें खो जाते और कुछ अलग ही महसूस करते हुए रेडियो में गाने सुनते सुनते सो जाते।नब्बे के दशक मे विविध भारती पर आने वाले गाने,रोमांस से मन भर देते।कई बार तो रेडियो बजता रहता और पता ही नहीं चलता कब नींद आ गई।कुमार सानू के गानों का तो आलम ये था कि कोई भी कहीं भी बजायें ख़्याल सिर्फ़ उस इंसान का ही आता।अगर उसमें बारिश हो जाये तो दिल में बिना कोई गाना सुने हीं “पहले प्यार का पहला ग़म ” बजने लगता।तब लगता कि बारिश के बिना प्यार करना और होना यहाँ तक की सोचना भी असंभव लगता।प्यार ऐसे होता था पहले या यूँ कहे यही होता था प्यार।बिना किसी बोझ को साथ लाए। सब कुछ मासूम और नया नया।जिसके लिए सोच कर ही पलकें शर्म और हया से झुक जाए,रात को चाँद को देख कर ये ख़्याल आये की दूर बैठा वो भी चाँद को ही देख रहा होगा और हम दूर बैठे भी एक दूसरे से जूड़े हुए हैं।हम दोनो यूँ दूर बैठे बैठे ही अधूरे चाँद को पूरा कर देंगे।सबकुछ विस्तार से घटता और हम समय का सदुपयोग करते हुये पलों को सदियों में गुज़रने देते।

कॉलेज परिसर में जब परीक्षा का माहौल गरमाने लगता तब एक दूसरे की चिंता,केयर के कारण अक्सर मुंह से निकल जाता “मस्त रहो”।अब मस्त होने का अर्थ समझ आया।मस्त का मतलब और अर्थ होता है मन को खोना,नियंत्रण खोना,अपने अहंकार से थोड़े नीचे उतर आना,पद और सिंहासन छोड़ना,फिर से बालक जैसे निर्दोष हो जाना,फिर से जीवन को आश्चर्य से भर लेना,जब फिर से वृक्षों की मस्ती और फूलों की सुगंध और हवाओं का नृत्य अर्थपूर्ण हो गया हो,जब मन ने अपनी गणित की क्षमता को दी हो। यह मस्त रहो ही प्यार है।इस शब्द मे असली प्यार का मतलब छुपा होता।

प्रेम आनंद का प्रतीक है और आनंद के लिए सृजनात्मकता चाहिए।कुछ निर्मित करना,कुछ तैयार करना,बनाना जो हमसे बड़ा हो।सृजन करना,प्रेम का कृत्य है।प्रेम और सृजन एक दूसरे के पूरक हैं। प्रेम के सर्जन में मानव जीवन की निरंतरता बनी हुई है। प्रेम के कृत्य से जीवन आह्लादित हो उठता है आनंद से भर जाता हैं।प्रेम और आनंद सृजन का बाई प्रोडक्ट है। सृजन सकारात्मक ऊर्जा से होता है।यह सकारात्मक ऊर्जा प्रकृति के सामिप्य में स्थित है। और यही प्रेम है।




Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate »