आखिर क्यों बार-बार पेपर लीक के मामले बढ़ते जा रहे हैं
पेपर लीक नेटवर्क के ऑर्गेनाइज्ड माड्यूल की कड़ियों को तोड़कर फुल-प्रूफ मॉडल अपनाकर समाधान निकालना ज़रूरी – एडवोकेट किशन भावनानी
गोंदिया – वैश्विक स्तरपर भारत की बौद्धिक क्षमता प्रतिष्ठित है जिसे ऊपरवाले का वरदान माना जाता है, जो कि सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी प्रसारित होते जा रहा है। याने हम यूं कह सकते हैं कि भारत माता की मिट्टी में ही ऐसी अदृश्य शक्तियां समाई हुई है कि, यहां जन्म लेने वाले की पीढ़ियों तक उसके गुण समाहित होते जाते हैं, चाहे वह दुनिया में कहीं भी रहता हो जिसका उदाहरण हम मूल भारतीयों के वैश्विक स्तरपर मज़बूत नियुक्तियों को देखकर कह सकते हैं परंतु यह उतना ही सच है कि समय के साथ-साथ शिक्षा का व्यवसायीकरण बढ़ता जा रहा है जो, हरे गुलाबी के पहाड़ बनाने का मुख्य स्रोत होता जा रहा है इससे इनकार नहीं किया जा सकता। क्योंकि जिस तरह पेपर लीक़ मामले बिहार उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश झारखंड राजस्थान हरियाणा गुजरात इत्यादि राज्यों में पेपर लीक के मामले सामने आए हैं, बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। मेरा मानना है कि कुछ अपवादों को छोड़ दें तो शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र बचा होगा जिसमें पेपर लीक न हुआ हो चाहे फ़िर वह नेट टीईटी 10वीं 12वीं बोर्ड परीक्षाएं नीट राज्य स्तरीय पीएससी यूपीएससी तो ठीक है, परंतु मुझे याद है जब मैं सीए फाइनल की परीक्षा दे रहा था तो उस दिन पेपर लीक की वजह से कैंसिल हुआ था यह बात सेंटर जाने के बाद पता चली थी।अब सवाल उठता है कि आखिर यह कैसे होता है पेपर लीक? इसपर हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के आधार पर इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे! पेपर लीक सिस्टम वीक? आखिर क्यों बार-बार पेपर लीक के मामले बढ़ते जा रहे हैं? चूंकि अभी एक राज्य में यह मामला हाई लेवल पर गरमाया हुआ है। एक सांसद महोदय का धरना चालू है और उसे बल देने केंद्रीय मंत्री भी उस राज्य में पहुंचकर स्थिति को बल दे रहे हैं।
साथियों बात अगर हम एक राज्य में हुए पेपर लीक पर चल रही धमाचौकड़ी की करें तो, पेपर लीक समेत 4 सूत्रीय मांगों को लेकर जयपुर के आगरा रोड पर अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ राजयसभा सांसद धरने पर बैठे हुए हैं। इनके धरने में केंद्रीय मंत्री और पार्टी के कई अन्य नेता भी शामिल हुए। केंद्रीय मंत्री भी आज दोपहर संसद सदस्य के समर्थन में धरना स्थल पर पहुंचे।गृह राज्य मंत्री सांसद उप नेता प्रतिपक्ष के साथ हुई पहले दौर की वार्ता विफल रही। उन्होंने मौजूदा सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार डर के कारण ही सीबीआई जांच नहीं करवा रही है. उन्होंने कहा जब तक सीबीआई जांच नहीं होगी तब तक उनका धरना जारी रहेगा।
साथियों बात अगर हम पेपर लीक होने की करें तो, जितना पुराना इतिहास कॉम्पिटिटिव एग्जाम्स का है, शायद उतना ही पुराना इतिहास इन एग्जाम्स के पेपर लीक होने का भी है। इस लीक को फिक्स करने की कोशिशें और वादे तो कई हुए लेकिन लीक है कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही। आरजेपीसीएस के कुछ समय पहले हुए पेपर लीक ने इस मसले को फिर गरमा दिया है। किसी भी एग्जाम का पेपर कहां से और कैसे लीक होता है, इसका कोई तय फॉर्म्युला नहीं है। हर एग्जाम के लिए जरिया अलग हो सकता है। ऐसे में जानकार पेपर लीक होने के बारे में कई तरह की अटकलें लगाते हैं। पेपर लीक का काम भले ही बेइमानी का है लेकिन इसमें हरे गुलाबी का लेन-देन काफी ईमानदार तरीके से होता है। जो धंधे में पुराने होते हैं, वे धोखा नहीं देते। कई पेपर लीक करने वाले कुछ हरे गुलाबी अडवांस और पेपर सही निकलने पर बाकी रकम देने का फॉर्म्युला अपनाते हैं तो कुछ बिना हरे गुलाबी लिए ही पर्चे दे देते हैं। इस तरह की सेटिंग करवाने वाले इस बात को लेकर निश्चिंत रहते हैं कि वसूल लेंगे। वे सिस्टम में लूप होल के जरिए अगर पेपर आउट करा सकते हैं तो किसी से हरे गुलाबी वसूलने के लिए हर तरह के हथकंडे भी अपना सकते हैं।
साथियों बात अगर हम प्रक्रिया की विडंबना की करें तो, पेपर सेट करने के लिए बनाए गए पैनल के जरिए हर एग्जाम में पेपर सेट करने के लिए सब्जेक्ट्स के सीनियर टीचर्स का पैनल बनाया जाता है। बरसों तक पैनल का हिस्सा रहे टीचर्स भी इस नेटवर्क का हिस्सा बन सकने की संभावना हो सकती हैं। एग्जाम कंडक्ट कराने वाली एजेंसी के जरिए एग्जाम को कंडक्ट करानेकी जिम्मेदारी एसएससी पीएससी जैसी संस्थाओं के जिम्मे होती है। पेपर से लेकर कॉपियों तक की कस्टडी फाइनल स्टेज में इनके पास होती है। इन जगहों पर बरसों से काम कर रहे सरकारी बाबू कि कुछ भी कर सकने की संभावना हो सकती है। पेपर प्रिंटिंग का जिम्मा उठाने वाली एजेंसी के जरिए वैसे तो पेपर प्रिंटिंग का जिम्मा सरकारी प्रेस को ही दिया जाता था लेकिन हाल में प्राइवेट कंपनियों को भी इस तरह के ठेके दिए जा रहे हैं। तकनीक के बढ़ते दखल के चलते एग्जाम पेपर को बाहर निकालना काफी आसान हो गया है। पहले जहां कागजात बाहर लाने पड़ते थे, अब मोबाइल कैमरा ही सारा काम कर देता है। एग्जाम सेंटर के जरिए यूपी और बिहार जैसे राज्यों में छोटे-छोटे कॉलेजों को भी एग्जाम सेंटर बनाया जाता है। कुछ घंटों पहले सेंटर पर पहुंचा पेपर भी कई बार लीक करवाने वालों के लिए कमजोर कड़ी साबित होता है। उस पर कमाल यह है कि कभी भी ऐसे मामलों में किसी सेंटर के खिलाफ कोई कड़ा आपराधिक मामला दर्ज नहीं किया गया और न ही कोई जेल गया।
साथियों बात अगर हम पेपर लीक मामले में जिम्मेदार मंत्री के बयान की करें तो, गुलाबी राज्य में पेपर लीक मामले पर हो रही छीछालेदर के बीच राज्य सरकार में मंत्री ने भी बयान दिया था कि, गुलाबी सिटी के एक जिले के प्रभारी, मंत्री ने अध्यापक भर्ती परीक्षा के पेपर लीक होने के मामले में कहा कि सरकार का काम कॉलेज खोलना है, पेपर लीक होना सरकार की नाकामी नहीं है। उन्होंने आगे कहा था कि एक ही तो पेपर लीक हुआ है। परीक्षा निरस्त पहले भी होती आई है, हर स्टेट में होती है। पेपर लीक हुआ तो हमने परीक्षा रद्द कर दी, कठोर कार्रवाई की है. लोगों को जेल में भी डाला है। हमने उनको गिरफ्तार भी कर लिया है, अब भी कानूनी कार्रवाई करेंगे, कोई गोली थोड़ी मार देंगे!!? कोचिंग वालों की इसमें संलिप्तता है, इनका यह धंधा है?
साथियों बात अगर हम इस मामले में एक पूर्व डीजीपी के बयान की करें तो, यूपी के पूर्व डीजीपी का कहना है कि पूरा काम काफी संगठित ढंग से होता है। हर मॉड्यूल अपने हिसाब से काम करता है। इस तरह के मॉड्यूल में ऐसे लोग भी शामिल रहते हैं, जो खुलासा होने पर जेल जाने के लिए तय किए जाते हैं। इन्हें इस शर्त पर राजी किया जाता है कि वे मुंह नहीं खोलेंगे। इसके लिए उन्हें मलाई दी जाती है। पेपर लीक से उगाही गई मलाई में से बड़ा हिस्सा जेल गए लोगों को छुड़ाने और उनके परिवार को सहारा देने के लिए तय कर लिया जाता है ऐसी संभावना व्यक्त की जा रही है
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे मामले का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि पेपर लीक, सिस्टम वीक? आखिर क्यों बार-बार पेपर लीक के मामले बढ़ते जा रहे हैं? पेपर लीक नेटवर्क के ऑर्गेनाइज्ड मॉड्यूल की कड़ियों को तोड़कर फुल-प्रूफ मॉडल अपनाकर समाधान निकालना ज़रूरी है।
-संकलनकर्ता लेखक – कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र