आवासीय में कमर्शियल कॉम्प्लेक्स फ्लैट्स बनाकर करोड़ों कमाते बिल्डर इनकमटैक्स और निगम को लगा रहे चूना
एक एक फ्लैट की कीमत है करोड़ों की। पेंट हाउस भी बिकता है करोड़ों में
बैसमेन्ट और पार्किंग में भी बनने लगे हैं फ्लैट्स और बिक रहे करोड़ों में
बिना फायर एनओसी के बनती बहुमंज़िला बिल्डिंग टिकी होती हैं सिलेंडर की टँकी पर
बैसमेन्ट में रखते हैं बिल्डिंग में काम करने वाले परिवारों को स्टॉफ को
ज़ीरो सेटबैक पर बनी बिल्डिंग्स ख़तरा है आसपास की बिल्डिंग्स के लिए भी
आख़िर क्यों नहीं होती कार्यवाही इन अवैध निर्माणों और सड़क पर बढ़ते अतिक्रमणों पर?
शालिनी श्रीवास्तव /जयपुर हिलव्यू समाचार। राजापार्क में अवैध निर्माणों का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा। नगर निगम मालवीय नगर जोन से औपचारिक व दिखावटी अनुमति लेकर मालवीय नगर जोन नगर निगम ग्रेटर के बिल्डर्स मज़े कर रहे हैं। अनुमति कुछ और होती है लेकिन बिल्डिंग बायलॉज के नियमों,नक़्शे, ले-आउट प्लान के विपरीत काम होता आसानी से देखा जा सकता है-◆बेसमेंट की परमिशन नहीं होती लेकिन बन रहे हैं,◆सेटबैक 20-30 फीट छोड़ना है लेकिन 05-10 फीट छोड़कर आसपास की आम जनता की आँखों व निगम की आँखों में धूल झौंक कर धड़ल्ले से अवैध निर्माण हो रहे हैं।◆राजापार्क थाना जवाहर के ठीक सामने इसी तरह आमने-सामने दो 270/4 व 250/4 अवैध निर्माण ज़ोरों पर हैं। 270/4 पर निगम की परमिशन लगी भी हुई है लेकिन सेटबैक में की गई चालाकी साफ नज़र आ रही है कि ज़ीरो सेटबैक पर यह निर्माण होता आसानी से देखा जा सकता है।◆इसी के साथ बेसमेंट का निर्माण अवैध निर्माण की कहानी को साफ़-साफ़ बयां कर रहा है। नगर निगम मालवीयनगर जोन बेख़बर है और सम्पूर्ण अवैध निर्माण बहुमंज़िला बनकर खड़ा होता जा रहा है। ◆आवासीय भूखण्ड में कमर्शियल बनते फ्लैट्स करोड़ों में बिकते हैं। निगम को तो रेवेन्यू का चूना लगता ही है साथ ही साथ इनकम टैक्स को भी कानों कान ख़बर नहीं होती इस काली कमाई की। ◆राजापार्क के रिहायशी इलाके में फ्लैट पाकर क्रेता गदगद हो जाता है उसे पता ही नहीं होता कि वह अवैध निर्माण व काली कमाई का ज़रिया बन गया है। ◆बिना अनुमति या अनुमति के बावजूद इसके विपरीत होने वाले इन निर्माणों में फ़्लैट्स खरीदने वाला जब ठगा जाता है जब सस्ते मैटेरियल से बने फ़्लैट्स में परेशान होता है। ◆बिना फायर एनओसी,बिना अनुमति के बने इन फ़्लैट्स में कई मूलभूत ज़रूरतों के फैलियर का सामना खरीददार को बाद में करना पड़ता है लेकिन तब तक बहुत देर हो जाती है। भ्रष्टाचार की मार इस खरीददार को ही भुगतनी पड़ती है।